सभी आदरणीय Judges, बार के सभी मित्रों,
देवेंद्र जी ने तो गर्व के साथ कहा कि वे भी किसी बार से जुड़े हुए हैं लेकिन मैं बार के बाहर हूं। लेकिन बार के बाहर का लाभ मिलता रहता है। मुझे आज जीवन में पहली बार मुंबई हाईकोर्ट के परिसर में जाने का सौभाग्य मिला। वैसे अच्छा है वहां जाना न पड़े। और वहां एक म्यूजियम का लोकार्पण करने का मौका मिला। मैं मोहित भाई और उनकी पूरी टीम और विशेषकर के श्रीमान जयकर जी का हृदय से अभिनंदन करता हूं कि उन्होंने एक उत्तम काम किया है।
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दुनिया में अधिकतम देश ऐसे हैं कि जहां म्यूजियम को समाज-जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है और हर व्यवस्था में म्यूजियम को महत्व को समझा गया है। म्यूजियम के क्षेत्र में पढ़ाई करने वाले लोगों का भी आदर-सत्कार होता है। इन दिनों China में बहुत बड़ी मात्रा में म्यूजियम बनाने का काम चल रहा है। हर वर्ष बहुत बड़ी मात्रा में नए म्यूजियम वहां आ रहे हैं, और वो अपनी पुरानी विरासत के साथ नई पीढ़ी को जोड़ रहे हैं। आधुनिक Technology का उपयोग करते हुए कर रहे हैं। भारत के पास तो संजोना, संवारने के लिए क्या कुछ नहीं है। हमें भी कभी न कभी हमारी इस महान विरासत के प्रति गर्व के साथ जुड़ना होगा और आने वाली पीढ़ी को इस महान विरासत को देने का प्रयास हो, ये प्रयास करना होगा। और इसलिए मैं मानता हूं कि इस उत्तम काम के लिए मुंबई हाईकोर्ट हृदय से अभिनंदन के अधिकारी हैं।
बार एसोसिएशन के 150 साल, एक छोटा कालखंड नहीं है, एक बड़ा कालखंड है ये। मैं नहीं जानता हूं कि इस पूरे वर्ष भर क्या-क्या कार्यक्रम हुए, किन-किन चीजों को प्रस्तुत किया गया लेकिन 150 साल का इतिहास अपने-आप में कितनी बड़ी घटना होगी, कैसे-कैसे बदलाव आए होंगे, कैसे-कैसे ठहराव आए होंगे, कैसे-कैसे उतार-चढ़ाव आए होंगे। अगर उसे एक History के रूप में बार में तैयार हुआ होता या किया गया होगा तो मेरी तरफ से बधाई। लेकिन ये विरासत छोटी नहीं है और मैं देख रहा था कि राव जी इतना रिसर्च करके आए थे और इतनी गहराई से कब शुरू हुआ, कैसे शुरू हुआ, कितने-कितने लोग उसमें जुड़े और एक-एक नाम सुनते कितना गर्व हुआ और आप भी कह सकते हैं, मैं उस बार में हूं जहां कभी महात्मा गांधी हुआ करते थे, मैं उस बार में हूं जहां कभी सरदार वल्लभ भाई पटेल जुड़ा करते थे। आप कल्पना कर सकते हैं ये अपने-आप में कितनी बड़ी गर्व की बात होती है और यही चीजें हैं तो व्यक्ति के जीवन में प्रेरणा देती हैं।
कभी कोई labour union बनाएं हैं तो समझ सकते हैं कि कुछ मांग करने के लिए होगा। लेकिन 150 साल पहले इस legal profession का Association क्यों बनाया गया होगा। ये यूनियन तो है नहीं। हमारी मांगें पूरी करो, फलां-फलां मुर्दाबाद - ये तो कोई आपका क्षेत्र नहीं है। मैं अनुमान करता हूं, मेरा कोई अध्ययन नहीं है। राव जी जरा उस पर अच्छी तरह प्रकाशित कर सकते हैं। मैं अनुमान करता हूं कि उस समय के महापुरुषों ने जो इस कल्पना को किया होगा उसके मूल में ये Profession के लोग मिलकर के Qualitative change के लिए ये Dynamic रूप से ये किस प्रकार निरंतर काम करते रहे, अपने आप को well-equipped कैसे कर सकें और अधिक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सामूहिक चिंतन-मनन का गहन कैसे प्राप्त हो। वो एक उत्तम आदर्शों के लेकर के इस परंपरा का प्रारंभ हुआ होगा।
अकेले अगर कोई वकील हुए होते तो कोई वकालत करते होते तो शायद देश को जितने उत्तम महापुरुष मिले बार में से वो शायद न मिले होते। ये इतने महापुरुष शायद इसलिए मिले होंगे कि सामूहिक रूप से न्याय और अन्याय की बहस हुई होगी। देश को गुलाम क्यों रहना चाहिए इसकी चर्चा हुई होगी, भीतर एक आग पैदा हुई होगी। और तभी सनत को छोड़कर के जो औरों को जेल जाने से बचाने के लिए जिंदगी खपा रहे थे खुद ने जेल में जिंदगी गुजारकर के देश को आजादी दिलाने के लिए जिंदगी खपाई।
ये छोटी बात नहीं होगी और देश की आजादी के आंदोलन को हम देखें - दो लोगों का सबसे अधिक उसमें Contribution नजर आता है। दो परंपरा से जुड़े हुए लोग। एक Legal Profession से आए हुए लोग और दूसरे शिक्षा के क्षेत्र से आए हुए लोग। इन दो क्षेत्रों से आए हुए लोगों ने आजादी के आंदोलन का नेतृत्व किया, आजादी के आंदोलन को ताकत दी। हम कल्पना कर सकते हैं उस समय जब अंग्रेजों का जुल्म चलता होगा अगर Legal Profession के लोग हिंदुस्तान के सामान्य नागरिक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं खड़े हुए होते, तो इस युद्ध में कौन उतरता। आजादी की लड़ाई के लिए जो सैनिक निकले होंगे, उनको भी एक बात का भरोसा रहा होगा कि अंग्रेज सल्तनत अगर गलत भी करेगी तो यहां का बार एसोसिएशन है, यहां के वकील हैं वो मेरे लिए लड़ मरेंगे, मुझे बचाएंगे, ये भाव पैदा हुआ। यानि कि आजादी की ज्योत को जलाए रखने में इस Profession के लोगों ने बहुत बड़ा योगदान किया होगा। उस महान विरासत से जुड़ी हुई ये परंपरा है और उसके 150वीं जयंती के समापन समारोह में आने का मुझे अवसर मिला है।
आप ने जब प्रारंभ किया था तब राष्ट्रपति जी आए थे। प्रारंभ किया था तब सरकार एक थी, समापन किया है तब सरकार दूसरी है। उधर भी दूसरी है, यहां भी दूसरी है, लोकतंत्र की यही तो विशेषता है। लेकिन मैं मानता हूं अब वक्त बहुत तेजी से बदल रहा है। 150 के बाद का बार का रंग रूप क्या हो, उसका एजेंडा क्या हो, उसकी गतिविधिय़ां क्या हो, उस पर कभी न कभी गंभीरता से सोचना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है।
आज देश में मैं एक आवश्यकता महसूस करता हूं और वो Quick Justice की बात तो बराबर होती रहती है, लेकिन Quality Justice की और ध्यान कैसे दिया जाए। अब Quality Justice, Judiciary का हिस्सा नहीं है, Quality Justice उस बहस करने वाले वकीलों पर निर्भर करता है। वो कैसा अध्ययन करके आए हैं, वो कैसे Reference लेकर के आए हैं, कितनी तेज-तर्रार Argument के साथ उन्होंने एक नया राह दिखाया है और एक Progressive unfoldment उस मथन में से, Court के भीतर वादी-प्रतिवादी के बीच जो मंथन हो रहा है, उसमें से वो अमृत निकले जो आने वाली पीढ़ियों तक काम आ जाए। और तभी तो आपने भी देखा होगा। आप दुनिया के कई देशों के Judges के, Judgement को Quote करते होंगे, किसी और देश का होगा Quote करते होंगे। मैं तो कभी Court गया नहीं, मैं तो कभी वकील रहा नहीं, ऐसा करते ही होंगे। आप सामने वाले को Convince करते होंगे कि ये परंपरा रही है, ये माना गया है, उस समय ऐसा किया गया होगा ये सारी जो Process हैं वो Quality Justice के काम आती है। और Quality Justice शासकों के लिए भी एक प्रकार का सीमा चिह्न बन जाता है और मैंने देखा है हमारे यहां संसद में और विधानसभा में भी चर्चा होती है तो Court के Judgement को Quote किया जाता है किए गए Argument को Quote किया जाता है, रखे गए Quotation को Quote किया जाता है। क्यों? क्योंकि हर कोई अपनी बात को ताकत से रखना चाहता है।
आज जब Digital world है, हमारे पूरे legal world की पूरी व्यवस्थाएं Digitally Available हैं। हम उसे उपयोग कैसे करें? उसको हम कैसे ताकतवर बनाएं? एक जमाना था, गांव में एक वैद्यराज होता था, पूरा गांव स्वस्थ रहता था। आज शरीर के हर अंग के लिए डॉक्टर है। बांयी आंख के लिए अलग डॉक्टर, दांयी आंख के लिए अलग ऐसे भी डॉक्टर हैं। जिस प्रकार से Medical Profession में इतनी बारीकी बढ़ती गई है, इतने Specialise Subject बढ़ते गए हैं, मैं देख रहा हूं Legal Profession में भी अनके विविधताओं से भरी specialization की दिशा में ये जाना वाला है। और ये बार का काम कहां रह गया है क्योंकि सब लोग एक ही प्रकार की डिग्री लेकर के आते हैं, सब लोग एक ही प्रकार की यूनिवर्सिटी से आते हैं और वो ही पुराने Syllabus से गाड़ी चलती हैं। लेकिन बार का काम बनता है वो समयानुकूल डिबेट रखते हुए, सेमिनार करते हुए, वर्कशॉप करते हुए अपनी इस Skill को Expertise की ओर कैसे ले जाए। आज से कुछ साल पहले IPR के लिए किसको लड़ना पड़ता था? Intellectual property right के लिए शायद आए दिन जंग होती रहती है और जब तक Expertise नहीं होगी तो IPR की लड़ाई हम कैसे लड़ेंगे? कोई एक जमाना था अपने गांव के मुद्दे रहते थे, अपने अड़ोस-पड़ोस के मुद्दे रहते थे या दो व्यापारियों के रहते थे। आज सारी दुनिया बदल चुकी है, वैश्विक परिवेश में हमें काम करना पड़ रहा है। और इसलिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों से सीधा-सीधा संबंध न हो तो भी Reference अनिवार्य बन गया है, आपके सारे litigation के साथ वो जुड़ा हुआ है।
Crime की दुनिया पूरी तरह बदल रही है। आज Cyber crime एक नया जगत शुरू हआ है। और Cyber crime जब एक नया जगत शुरू हआ है तो ये हमारी पुरानी किताब के आधार पर हम ये Cyber crime क्या लड़ेंगे? किस तरीके से हम सबूत लाएंगे? और तब जाकर के Forensic Science से हमारा परिचित होना समय की मांग बनी है। मैं जब गुजरात में था हमने एक Forensic Science University बनाई थी। दुनिया में मात्र एक Forensic Science University है। और Judges वहां पढ़ने के लिए आते थे, बार के मित्र वहां पढ़ने के लिए आते थे Regularly. क्योंकि उन्हें मालूम था कि आने वाले दिनों में Justice की Process में Forensic Science एक बहुत बड़ा Role play करने वाला है। आज Economical Offences बढ़ रहे हैं। एक बहुत बड़ा क्षेत्र Financial world से जुड़े हुए litigation का बन गया है। उसकी Specialise होने वाली है। और उस अर्थ में पूरा Legal profession एक नए रंग-रूप में सज रहा है। और बार में वो ताकत होती है कि इसको अधिक सक्षम कैसे बनाए, अपने बार के साथियों को। जगत के लोग इस प्रकार को जानते हैं, हर महीने उन्हें बुलाकर के, उन्हें सुनकर के, उस प्रकार की किताबें मुहैया कराकर के या तो E-Library की Membership दिलाकर के, हम अपनी सज्जता को कैसे बढ़ाएं और हमारे सामर्थवान Legal profession होगा तो Keep Justice के साथ Quality Justice भी और तेज गति से काम बनेगा और जब इतनी बारीकी से होगा तो Litigant कोई भी क्यों न हो, हार-जीत किसी कि भी क्यों न हो लेकिन कम से कम संतोष जरूर होगा।
और आखिरकर इस व्यवस्था पर विश्वास तब बना रहता है कि जब हारने वाले को भी संतोष हो कि चलिए भाई मैंने अपने पूरी ताकत लगाई, मेरा नसीब ऐसा था। कम से कम विश्वास तो बना रहता है। अगर हमारी व्यवस्था पर से विश्वास टूट जाता है तो व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं। और इसलिए व्यवस्थाओं में विश्वास होना - Institutional Credibility - ये समय की बहुत बड़ी मांग होती है और Institutional Credibility के लिए हम जितना प्रयास करे। और ये एक जगह पर नहीं होता।
और एक क्षेत्र है जो सबसे बड़ा चिंता का है और मैं बार के मित्रों से विनती करता हूं कि क्या आप हमारी मदद कर सकते हैं क्या। आपको हैरानी होगी सरकार में, सरकार का मुख्य काम होता है कानून बनाना। लेकिन सरकार के पास कानून Drafting के लिए जिस प्रकार का Manpower होना चाहिए, मैं हमेशा कमी महसूस करता हूं। और आज जो कभी-कभी Pendency को लेकर के Judiciary पर आलोचना होती है - कि काम नहीं हो रहा है, Pendency नहीं है लेकिन Pendency के मूड में मुझे कभी-कभी लगता है कि हम लोग ज्यादा जिम्मेवार हैं। उन्होंने ऐसे कानून बनाएं हैं कि जिनके 10 अर्थ होते हैं। और उसी के कारण ये समस्या बढ़ती है। हम शुरू कहां से करें? अच्छा कोर्ट का बिल्डिंग बनाएं कि अच्छा पार्लियामेंट में कानून बनाएं?
और इसलिए इन दिनों मैं आग्रह करता हूं कि कोई भी नए एक्ट का ड्राफ्ट है उसको ऑनलाइन रखो। बार के मित्रों को कहा कि इसकी बराबर बाल की खाल उधेड़कर रखो कि भई देखो इसमें क्या गलती हो रही है, निकालो, हमें बताओ। तब ही जाकर के एक्ट अच्छे बनते हैं और एक्ट जिसमें मिनिमम और हम मनुष्य हैं, हम जीरो ग्रे एरिया तो नहीं कह सकते, हम मनुष्य हैं, मनुष्य से गलती हो सकती है। लेकिन मिनिमम ग्रे एरिया हो ऐसे हम कानून बनाते हैं तो मैं नहीं मानता हूं कि Judiciary को निर्णय करने में कभी देर लगती है।
वो फटाक से कह सकते हैं कि भई ये हो सकता है, ये नहीं हो सकता है। और इसलिए हमारे यहां जो कानून बनाने की प्रक्रिया है उसको भी बार एसोसिएशन की मदद से अच्छा बनाया जा सकता है। हमारी जितनी Law Universities हैं, वहां पर Drafting के Special Courses चलाने की आवश्यकता है। वहां पर Legal Profession में जाने वाले व्यक्ति को Act Draft करना उसकी भी एक Professionally training होना चाहिए।
सरकारों का भी एक स्वभाव रहा है। अच्छी सरकार वो नहीं है जो कानूनों के जंगल खड़े कर दे। हर दिन एक नया कानून बनाए, हम सीना तानकर के कहते रहें हमने ये कानून बनाया है, हमने वो कानून बनाया है। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि मेरी सफलता ये है कि अगर हमने पांच साल में हर दिन एक कानून खत्म करू। और मुझे खुशी है कि मेरा पांच साल का जितना कोटा है वो मैंने आठ महीने में पूरा कर दिया है। 1700 कानून खत्म कर रहे हैं, पता नहीं कैसे-कैसे कानून बने पड़े हैं जी और कोई भी एक कानून 1880 का एक कानून लेकर के आएगा और वो खड़ा हो जाएगा और वो दो-छह महीने कोर्ट के खराब करता रहेगा। ये भी पूरी तरह से व्यवस्था में बदलाव। हम लगे हैं, और मैं मानता हूं कि पूरी तरह से, मैंने अभी मुख्यमंत्रियों से राज्य में भी कहा। मैंने कहा भई ये अब बहुत हो गए, अब कुछ कम करो, जितने कानून कम होंगे, उतनी न्याय की सुविधा बढ़ेगी। कानूनों को जंगल से न्याय पाने में कभी कभी कठिनाई हो जाती है। और इसलिए कानून सरल हो, कानून सामान्य मानव को विश्वास दिलाने वाला हो, और निष्पक्ष भाव से बना हुआ हो तो सरकारों को भी ये जिम्मेवारी है। और जैसे हमारे Law minister कह रहे थे कि बार, ज्यूडिशिरी और गर्वमेंट ये तीनों का Functioning अगर एक समान रूप से चलता है, और सही direction में चलता है तो फिर देश को परिणाम मिलता है। उन परिणाम की प्राप्ति करने के लिए हम आगे बढ़ना चाहते हैं।
इन दिनों सारा विश्व का ध्यान भारत की तरफ है। हम पिछले कई वर्षों से सुनते हुए आए हैं कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। और हम ये भी देख रहे हैं कि दुनिया के