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Text of Prime Minister's 'Mann ki Baat' on All India Radio

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Delhi


मेरे प्यारे किसान भाइयो और बहनो, आप सबको नमस्कार!

ये मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे देश के दूर सुदूर गाँव में रहने वाले मेरे किसान भाइयों और बहनों से बात करने का अवसर मिला है। और जब मैं किसान से बात करता हूँ तो एक प्रकार से मैं गाँव से बात करता हूँ, गाँव वालों से बात करता हूँ, खेत मजदूर से भी बात कर रहा हूँ। उन खेत में काम करने वाली माताओं बहनों से भी बात कर रहा हूँ। और इस अर्थ में मैं कहूं तो अब तक की मेरी सभी मन की बातें जो हुई हैं, उससे शायद एक कुछ एक अलग प्रकार का अनुभव है।
 
जब मैंने किसानों के साथ मन की बात करने के लिए सोचा, तो मुझे कल्पना नहीं थी कि दूर दूर गावों में बसने वाले लोग मुझे इतने सारे सवाल पूछेंगे, इतनी सारी जानकारियां देंगे, आपके ढेर सारे पत्र, ढेर सारे सवाल, ये देखकर के मैं हैरान हो गया। आप कितने जागरूक हैं, आप कितने सक्रिय हैं, और शायद आप तड़पते हैं कि कोई आपको सुने। मैं सबसे पहले आपको प्रणाम करता हूँ कि आपकी चिट्ठियाँ पढ़कर के उसमें दर्द जो मैंने देखा है, जो मुसीबतें देखी हैं, इतना सहन करने के बावजूद भी, पता नहीं क्या-क्या आपने झेला होगा।

आपने मुझे तो चौंका दिया है, लेकिन मैं इस मन की बात का, मेरे लिए एक प्रशिक्षण का, एक एजुकेशन का अवसर मानता हूँ। और मेरे किसान भाइयो और बहनो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि आपने जितनी बातें उठाई हैं, जितने सवाल पूछे हैं, जितने भिन्न-भिन्न पहलुओं पर आपने बातें की हैं, मैं उन सबके विषय में, पूरी सरकार में जागरूकता लाऊँगा, संवेदना लाऊँगा, मेरा गाँव, मेरा गरीब, मेरा किसान भाई, ऐसी स्थिति में उसको रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मैं तो हैरान हूँ, किसानों ने खेती से संबधित तो बातें लिखीं हैं। लेकिन, और भी कई विषय उन्होंने कहे हैं, गाँव के दबंगों से कितनी परेशानियाँ हैं, माफियाओं से कितनी परेशानियाँ हैं, उसकी भी चर्चा की है, प्राकृतिक आपदा से आने वाली मुसीबतें तो ठीक हैं, लेकिन आस-पास के छोटे मोटे व्यापारियों से भी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं।

किसी ने गाँव में गन्दा पानी पीना पड़ रहा है उसकी चर्चा की है, किसी ने गाँव में अपने पशुओं को रखने के लिए व्यवस्था की चिंता की है, किसी ने यहाँ तक कहा है कि पशु मर जाता है तो उसको हटाने का ही कोई प्रबंध नहीं होता, बीमारी फैल जाती है। यानि कितनी उपेक्षा हुई है, और आज मन की बात से शासन में बैठे हुए लोगों को एक कड़ा सन्देश इससे मिल रहा है। हमें राज करने का अधिकार तब है जब हम इन छोटी छोटी बातों को भी ध्यान दें। ये सब पढ़ कर के तो मुझे कभी कभी शर्मिन्दगी महसूस होती थी, कि हम लोगों ने क्या किया है! मेरे पास जवाब नहीं है, क्या किया है? हाँ, मेरे दिल को आपकी बातें छू गयी हैं। मैं जरूर बदलाव के लिए, प्रामाणिकता से प्रयास करूंगा, और उसके सभी पहलुओं पर सरकार को, जगाऊँगा, चेताऊंगा, दौडाऊंगा, मेरी कोशिश रहेगी, ये मैं विश्वास दिलाता हूँ।

मैं ये भी जानता हूँ कि पिछले वर्ष बारिश कम हुई तो परेशानी तो थी ही थी। इस बार बेमौसमी बरसात हो गयी, ओले गिरे, एक प्रकार से महाराष्ट्र से ऊपर, सभी राज्यों में, ये मुसीबत आयी। और हर कोने में किसान परेशान हो गया। छोटा किसान जो बेचारा, इतनी कड़ी मेहनत करके साल भर अपनी जिन्दगी गुजारा करता है, उसका तो सब कुछ तबाह हो गया है। मैं इस संकट की घड़ी में आपके साथ हूँ। सरकार के मेरे सभी विभाग राज्यों के संपर्क में रह करके स्थिति का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं, मेरे मंत्री भी निकले हैं, हर राज्य की स्थिति का जायजा लेंगे, राज्य सरकारों को भी मैंने कहा है कि केंद्र और राज्य मिल करके, इन मुसीबत में फंसे हुए सभी किसान भाइयों-बहनों को जितनी ज्यादा मदद कर सकते हैं, करें। में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सरकार पूरी संवेदना के साथ, आपकी इस संकट की घड़ी में, आपको पूरी तत्परता से मदद करेगी। जितना हो सकता है, उसको पूरा करने का प्रयास किया जायेगा।

गाँव के लोगों ने, किसानों ने कई मुददे उठाये हैं। सिंचाई की चिंता व्यापक नजर आती है। गाँव में सड़क नहीं है उसका भी आक्रोश है। खाद की कीमतें बढ़ रही हैं, उस पर भी किसान की नाराजगी है। बिजली नहीं मिल रही है। किसानों को यह भी चिंता है कि बच्चों को पढ़ाना है, अच्छी नौकरी मिले ये भी उनकी इच्छा है, उसकी भी शिकायतें हैं। माताओं बहनों की भी, गाँव में कहीं नशा-खोरी हो रही है उस पर अपना आक्रोश जताया है। कुछ ने तो अपने पति को तम्बाकू खाने की आदत है उस पर भी अपना रोष मुझे व्यक्त करके भेजा है। आपके दर्द को मैं समझ सकता हूँ। किसान का ये भी कहना है की सरकार की योजनायें तो बहुत सुनने को मिलती हैं, लेकिन हम तक पहुँचती नहीं हैं। किसान ये भी कहता है कि हम इतनी मेहनत करते हैं, लोगों का तो पेट भरते हैं लेकिन हमारा जेब नहीं भरता है, हमें पूरा पैसा नहीं मिलता है। जब माल बेचने जाते हैं, तो लेने वाला नहीं होता है। कम दाम में बेच देना पड़ता है। ज्यादा पैदावार करें तो भी मरते हैं, कम पैदावार करें तो भी मरते हैं। यानि किसानों ने अपने मन की बात मेरे सामने रखी है। मैं मेरे किसान भाइयों-बहनों को विश्वास दिलाता हूँ, कि मैं राज्य सरकारों को भी, और भारत सरकार के भी हमारे सभी विभागों को भी और अधिक सक्रिय करूंगा। तेज गति से इन समस्याओं के समाधान के रास्ते खोजने के लिए प्रेरित करूँगा। मुझे लग रहा है कि आपका धैर्य कम हो रहा है। बहुत स्वाभाविक है, साठ साल आपने इन्तजार किया है, मैं प्रामाणिकता से प्रयास करूँगा।

किसान भाइयो, ये आपके ढेर सारे सवालों के बीच में, मैंने देखा है कि करीबकरीब सभी राज्यों से वर्तमान जो भूमि अधिग्रहण बिल की चर्चा है, उसका प्रभाव ज्यादा दिखता है, और मैं हैरान हूँ कि कैसे-कैसे भ्रम फैलाए गए हैं। अच्छा हुआ, आपने छोटेछोटे सवाल मुझे पूछे हैं। मैं कोशिश करूंगा कि सत्य आप तक पहुचाऊं। आप जानते हैं भूमि-अधिग्रहण का कानून 120 साल पहले आया था। देश आज़ाद होने के बाद भी 60-65 साल वही कानून चला और जो लोग आज किसानों के हमदर्द बन कर के आंदोलन चला रहे हैं, उन्होंने भी इसी कानून के तहत देश को चलाया, राज किया और किसानों का जो होना था हुआ। सब लोग मानते थे कि कानून में परिवर्तन होना चाहिए, हम भी मानते थे। हम विपक्ष में थे, हम भी मानते थे।

2013 में बहुत आनन-फानन के साथ एक नया कानून लाया गया। हमने भी उस समय कंधे से कन्धा मिलाकर के साथ दिया। किसान का भला होता है, तो साथ कौन नहीं देगा, हमने भी दिया। लेकिन कानून लागू होने के बाद, कुछ बातें हमारे ज़हन में आयीं। हमें लगा शायद इसके साथ तो हम किसान के साथ धोखा कर रहे हैं। हमें किसान के साथ धोखा करने का अधिकार नहीं है। दूसरी तरफ जब हमारी सरकार बनी, तब राज्यों की तरफ से बहुत बड़ी आवाज़ उठी। इस कानून को बदलना चाहिए, कानून में सुधार करना चाहिए, कानून में कुछ कमियां हैं, उसको पूरा करना चाहिए। दूसरी तरफ हमने देखा कि एक साल हो गया, कोई कानून लागू करने को तैयार ही नहीं कोई राज्य और लागू किया तो उन्होंने क्या किया? महाराष्ट्र सरकार ने लागू किया था, हरियाणा ने किया था जहां पर कांग्रेस की सरकारें थीं और जो किसान हितैषी होने का दावा करते हैं उन्होंने इस अध्यादेश में जो मुआवजा देने का तय किया था उसे आधा कर दिया। अब ये है किसानों के साथ न्याय? तो ये सारी बातें देख कर के हमें भी लगा कि भई इसका थोडा पुनर्विचार होना ज़रूरी है। आननफानन में कुछ कमियां रह जाती हैं। शायद इरादा ग़लत न हो, लेकिन कमियाँ हैं, तो उसको तो ठीक करनी चाहिए।और हमारा कोई आरोप नहीं है कि पुरानी सरकार क्या चाहती थी, क्या नहीं चाहती थी? हमारा इरादा यही है कि किसानों का भला हो, किसानों की संतानों का भी भला हो, गाँव का भी भला हो और इसीलिए कानून में अगर कोई कमियां हैं, तो दूर करनी चाहिए। तो हमारा एक प्रामाणिक प्रयास कमियों को दूर करना है।

अब एक सबसे बड़ी कमी मैं बताऊँ, आपको भी जानकर के हैरानी होगी कि जितने लोग किसान हितैषी बन कर के इतनी बड़ी भाषणबाज़ी कर रहें हैं, एक जवाब नहीं दे रहे हैं। आपको मालूम है, अलग-अलग प्रकार के हिंदुस्तान में 13 कानून ऐसे हैं जिसमें सबसे ज्यादा जमीन संपादित की जाती है, जैसे रेलवे, नेशनल हाईवे, खदान के काम। आपको मालूम है, पिछली सरकार के कानून में इन 13 चीज़ों को बाहर रखा गया है। बाहर रखने का मतलब ये है कि इन 13 प्रकार के कामों के लिए जो कि सबसे ज्यादा जमीन ली जाती है, उसमें किसानों को वही मुआवजा मिलेगा जो पहले वाले कानून से मिलता था। मुझे बताइए, ये कमी थी कि नहीं? ग़लती थी कि नहीं? हमने इसको ठीक किया और हमने कहा कि भई इन 13 में भी भले सरकार को जमीन लेने कि हो, भले रेलवे के लिए हो, भले हाईवे बनाने के लिए हो, लेकिन उसका मुआवजा भी किसान को चार गुना तक मिलना चाहिए। हमने सुधार किया। कोई मुझे कहे, क्या ये सुधार किसान विरोधी है क्या? हमें इसीलिए तो अध्यादेश लाना पड़ा। अगर हम अध्यादेश न लाते तो किसान की तो जमीन वो पुराने वाले कानून से जाती रहती, उसको कोई पैसा नहीं मिलता। जब ये कानून बना तब भी सरकार में बैठे लोगों में कईयों ने इसका विरोधी स्वर निकला था। स्वयं जो कानून बनाने वाले लोग थे, जब कानून का रूप बना, तो उन्होंने तो बड़े नाराज हो कर के कह दिया, कि ये कानून न किसानों की भलाई के लिए है, न गाँव की भलाई के लिए है, न देश की भलाई के लिए है। ये कानून तो सिर्फ अफसरों कि तिजोरी भरने के लिए है, अफसरों को मौज करने के लिए, अफ़सरशाही को बढ़ावा देने के लिए है। यहाँ तक कहा गया था। अगर ये सब सच्चाई थी तो क्या सुधार होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? ..और इसलिए हमने कमियों को दूर कर के किसानों का भला करने कि दिशा में प्रयास किये हैं। सबसे पहले हमने काम किया, 13 कानून जो कि भूमि अधिग्रहण कानून के बाहर थे और जिसके कारण किसान को सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला था, उसको हम इस नए कानून के दायरे में ले आये ताकि किसान को पूरा मुआवजा मिले और उसको सारे हक़ प्राप्त हों। अब एक हवा ऐसी फैलाई गई कि मोदी ऐसा कानून ला रहें हैं कि किसानों को अब मुआवजा पूरा नहीं मिलेगा, कम मिलेगा।

मेरे किसान भाइयो-बहनो, मैं ऐसा पाप सोच भी नहीं सकता हूँ। 2013 के पिछली सरकार के समय बने कानून में जो मुआवजा तय हुआ है, उस में रत्ती भर भी फर्क नहीं किया गया है। चार गुना मुआवजा तक की बात को हमने स्वीकारा हुआ है। इतना ही नहीं, जो तेरह योजनाओं में नहीं था, उसको भी हमने जोड़ दिया है। इतना ही नहीं, शहरीकरण के लिए जो भूमि का अधिग्रहण होगा, उसमें विकसित भूमि, बीस प्रतिशत उस भूमि मालिक को मिलेगी ताकि उसको आर्थिक रूप से हमेशा लाभ मिले, ये भी हमने जारी रखा है। परिवार के युवक को नौकरी मिले। खेत मजदूर की संतान को भी नौकरी मिलनी चाहिए, ये भी हमने जारी रखा है। इतना ही नहीं, हमने तो एक नयी चीज़ जोड़ी है। नयी चीज़ ये जोड़ी है, जिला के जो अधिकारी हैं, उसको इसने घोषित करना पड़ेगा कि उसमें नौकरी किसको मिलेगी, किसमें नौकरी मिलेगी, कहाँ पर काम मिलेगा, ये सरकार को लिखित रूप से घोषित करना पड़ेगा। ये नयी चीज़ हमने जोड़ करके सरकार कि जिम्मेवारी को Fix किया है।

मेरे किसान भाइयो-बहनो, हम इस बात पर agree हैं, कि सबसे पहले सरकारी जमीन का उपयोग हो। उसके बाद बंजर भूमि का उपयोग हो, फिर आखिर में अनिवार्य हो तब जाकर के उपजाऊ जमीन को हाथ लगाया जाये, और इसीलिए बंजर भूमि का तुरंत सर्वे करने के लिए भी कहा गया है, जिसके कारण वो पहली priority वो बने।

एक हमारे किसानों की शिकायत सही है कि आवश्यकता से अधिक जमीन हड़प ली जाती है। इस नए कानून के माध्यम से मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि अब जमीन कितनी लेनी, उसकी पहले जांच पड़ताल होगी, उसके बाद तय होगा कि आवश्यकता से अधिक जमीन हड़प न की जाए। कभी-कभी तो कुछ होने वाला है, कुछ होने वाला है, इसकी चिंता में बहुत नुकसान होता है। ये Social Impact Assessment (SIA) के नाम पर अगर प्रक्रिया सालों तक चलती रहे, सुनवाई चलती रहे, मुझे बताइए, ऐसी स्थिति में कोई किसान अपने फैसले कर पायेगा? फसल बोनी है तो वो सोचेगा नहीं-नहीं यार, पता नहीं, वो निर्णय आ जाएगा तो, क्या करूँगा? और उसके 2-2, 4-4, साल खराब हो जाएगा और अफसरशाही में चीजें फसी रहेंगी। प्रक्रियाएं लम्बी, जटिल और एक प्रकार से किसान बेचारा अफसरों के पैर पकड़ने जाने के लिए मजबूर हो जाएगा कि साहब ये लिखो, ये मत लिखों, वो लिखो, वो मत लिखो, ये सब होने वाला है। क्या मैं मेरे अपने किसानों को इस अफसरसाही के चुंगल में फिर एक बार फ़सा दूं? मुझे लगता है वो ठीक नहीं होगा। प्रक्रिया लम्बी थी, जटिल थी। उसको सरल करने का मैंने प्रयास किया है।

मेरे किसान भाइयो-बहनो 2014 में कानून बना है, लेकिन राज्यों ने उसको स्वीकार नहीं किया है। किसान तो वहीं का वहीं रह गया। राज्यों ने विरोध किया। मुझे बताइए क्या मैं राज्यों की बात सुनूं या न सुनूं? क्या मैं राज्यों पर भरोसा करूँ या न करूँ? इतना बड़ा देश, राज्यों पर अविश्वास करके चल सकता है क्या? और इसलिए मेरा मत है कि हमें राज्यों पर भरोसा करना चाहिये, भारत सरकार में विशेष करना चाहिये तो, एक तो मैं भरोसा करना चाहता हूँ, दूसरी बात है, ये जो कानून में सुधार हम कर रहे हैं, कमियाँ दूर कर रहे हैं, किसान की भलाई के लिए जो हम कदम उठा रहे हैं, उसके बावजूद भी अगर किसी राज्य को ये नहीं मानना है, तो वे स्वतंत्र हैं और इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि ये जो सारे भ्रम फैलाए जा रहे हैं, वो सरासर किसान विरोधी के भ्रम हैं। किसान को गरीब रखने के षड्यन्त्र का ही हिस्सा हैं। देश को आगे न ले जाने के जो षडयंत्र चले हैं उसी का हिस्सा है। उससे बचना है, देश को भी बचाना है, किसान को भी बचाना है।

अब गाँव में भी किसान को पूछो कि भाई तीन बेटे हैं बताओ क्या सोच रहे हो? तो वो कहता है कि भाई एक बेटा तो खेती करेगा, लेकिन दो को कहीं-कहीं नौकरी में लगाना है। अब गाँव के किसान के बेटों को भी नौकरी चाहिये। उसको भी तो कहीं जाकर रोजगार कमाना है। तो उसके लिए क्या व्यवस्था करनी पड़ेगी। तो हमने सोचा कि जो गाँव की भलाई के लिए आवश्यक है, किसान की भलाई के लिये आवश्यक है, किसान कí

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First Published: Mar 22 2015 | 12:20 AM IST

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